Apne hisse ki khushi
अपने हिस्से की खुशी ( भाग 3)
माधुरी की एक रिश्तेदार भी सोशल मीडिया पर लेखन क्षेत्र में सक्रिय रहती थीं। उसकी लोकप्रियता को देखकर माधुरी को भी कुछ लिखने का मन करता था लेकिन उसे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी और वह अपनी रिश्तेदार से पूछना भी नहीं चाहती थी ।
एक दिन माधुरी अपना मोबाइल खोल कर कुछ देख रही थी अचानक उसे एक नोटिफिकेशन दिखा।
""यदि आप पढ़ने लिखने में रुचि रखते हैं तो उस लिंक पर क्लिक करें।"
माधुरी को पता नहीं क्या सुझा उसने लिंक पर क्लिक कर
दिया।
उसके बाद उसे लिखने का विकल्प दिखा।
उसने फटाफट कुछ लाइने लिखकर पोस्ट कर दिया।
अरे यह क्या ! उसकी रचना प्रकाशित हो गई। रचना पर पाठकों की संख्या बढ़ने लगी।वह खुशी से फूली नही समा रही थी।
एक कहानी उसके दिमाग में क़ई दिन से घूम रही थी , उसने वह कहानी लिखा और काफी जद्दोजहद करने के बाद उसने उसका शीर्षक लिखा"पिंजरे का कैदी"। इसे भी बहुत प्रशंशा मिली ।अब उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। इसे भी ज्यादा पाठक संख्या मिली साथ ही साथ समीक्षा भी । उसने अपनी रचना अपने फ्रेंड्स ग्रुप में सेंड किया तो उसकी सहेलियों ने भी खूब तारीफ़ किया।
अब वह और रचनाएँ लिखने लगी। उसकी रचनायें पसंद की जा रही थीं जिससे उसका आत्मविश्वास बढ़ने लगा।
कुछ ही महीनों में एक पोएट्री फेस्टिवल प्रतियोगिता में उसकी एक रचना ने प्रथम स्थान हासिल किया।
अब उसकी खुशी का पारावार नहीं था। उसे लोगों की शुभकामनाये मिल रही थीं। सोशल मीडिया में भी लोग उसे जानने लगे थे।अब वह और गम्भीरता से रचनायें लिखने लगी।
अब वह घर में भी पति और बच्चों से ठीक से पेश आती थी। बच्चे भी खुश कि अब माँ पहले की तरह ज्यादा दखलंदाजी नहीं करती हैं।उसकी प्रतिभा और कामयाबी से पति भी खुश रहते थे,उसकी हर संभव मदद करते थे।
कोरोना का प्रभाव पूरी तरहसे खत्म तो नहीं हुआ था लेकिन लोग अब बचाव के तरीकों को अपनाकर सावधानी पूर्वक अपनी सामान्य जिंदगी जीने लगे थे। आखिर कब तक लोग घरों में बंद रहते।
१साल बाद
माधुरी का उपन्यास "अपने हिस्से की खुशी"
प्रकाशित हुआ था। जो लगभग उसी की कहानी से मिलती जुलती थी। जिसे पाठकों ने बहुत पसंद किया था। उस किताब में उसने नारी जाति से आह्वान किया था कि उन्हें अपने हिस्से की खुशी जरूर मिलनी चाहिए।
दूसरों के जीना बहुत महान काम है लेकिन अपने व्यक्तित्व को दबाकर नहीं। हमें अपनी खुशी का ध्यान रखना चाहिए । सबको अपने हिस्से की खुशी पाने का हक़ है,लेकिन वो खुशियां हमें खुद ढूंढनी पड़ती है।
आरती किसी काम से माधुरी के शहर आई हुई थी ,माधुरी के बुलाने पर अनमने ढंग से उससे मिलने आ गई थी क्योंकि उसका पिछला अनुभव इतना अच्छा नहीं था।
लेकिन यहां आकर उसने अपनी सहेली का बदला रूप देखा जो कालेज के दिनों में होता था। आत्मविश्वास से भरी हुई माधुरी । पति और बच्चों की ज्यादा बातें नहीं कर रही थी आज उसके पास बहुत विषय थे बातें करने के लिए। उसने अपनी प्यारी सखी को उसने गले से लगा लिया उसकी प्यारी सखी ने अपने हिस्से की खुशी जो पा लिया था।
आरती --"माधुरी आज तो तुम अपनी सभी सखियों से आगे निकल गईं। मुझे तुम पर बहुत गर्व है। अब ऐसे ही रहना।
माधुरी--"इसका सारा श्रेय तुम्हे जाता है, मेरी प्रिय सखी!
तुम्हारी बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था।
आज मुझे लगता है कि मेरी जिंदगी में कुछ अधूरापन था।
अब मुझे बहुत आत्मसंतुष्टि मिलती है।
लेकिन उससे ज्यादा श्रेय कोरोना बीमारी को जाता है।
हंसते हुए विनय जी ने कहा।
जीजाजी ने मेरी अहमियत को कम कर दिया लेकिन सारा श्रेय मेरी प्रिय सखी को जाता है।
इसी बात पर मेरे हाथ के गर्मा गर्म चाय पकौड़े हो जाएं! विनय जी ने हंसते हुए कहा --"लॉक डाउन ने मुझे बहुत अच्छा शेफ़ बना दिया।
वाह जीजाजी बधाई हो !आप भी मास्टर शेफ़ प्रतियोगिता में पार्टिसिपेट करिये।
सभी के चेहरे खुशी से खिले हुए थे।
समाप्त
स्नेह लता पाण्डेय
Arman
27-Nov-2021 12:03 AM
Good
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Zeba Islam
21-Nov-2021 05:58 PM
Bhot khoob
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🤫
19-Jul-2021 09:20 PM
प्रेरक कहानी ..... खूबसूरत...
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